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इन्द्रा॑सोमा॒ परि॑ वां भूतु वि॒श्वत॑ इ॒यं म॒तिः क॒क्ष्याश्वे॑व वा॒जिना॑ । यां वां॒ होत्रां॑ परिहि॒नोमि॑ मे॒धये॒मा ब्रह्मा॑णि नृ॒पती॑व जिन्वतम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrāsomā pari vām bhūtu viśvata iyam matiḥ kakṣyāśveva vājinā | yāṁ vāṁ hotrām parihinomi medhayemā brahmāṇi nṛpatīva jinvatam ||

पद पाठ

इन्द्रा॑सोमा । परि॑ । वा॒म् । भू॒तु॒ । वि॒श्वतः॑ । इ॒यम् । म॒तिः । क॒क्ष्या॑ । अश्वा॑ऽइव । वा॒जिना॑ । याम् । वा॒म् । होत्रा॑म् । प॒रि॒ऽहि॒नोमि॑ । मे॒धया॑ । इ॒मा । ब्रह्मा॑णि । नृ॒पती॑इ॒वेति॑ नृ॒पती॑ऽइव । जि॒न्व॒त॒म् ॥ ७.१०४.६

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:104» मन्त्र:6 | अष्टक:5» अध्याय:7» वर्ग:6» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:6» मन्त्र:6


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रासोमा) हे परमात्मा ! (इयं, मतिः) इस मेरी प्रार्थना से (वाम्) आप (विश्वतः) सब शत्रुओं को (परिभूतु) वश में लाकर सुमार्ग की ओर प्रेरणा करें, जिस प्रकार (कक्ष्या) कक्षबन्धनी रज्जु (वाजिना, अश्वा, इव) बलयुक्त अश्वों को वश में लाकर इष्ट मार्ग में ले आने के योग्य बनाती है, (यां वाचम्) जिस वाणी से (वां) आप को (मेधया) अपनी बुद्धि के अनुसार मैं (परिहिनोमि) प्रेरित करता हूँ, (इमा, ब्रह्माणि) यह स्तुतिरूप वाणी (नृपती, इव) जिस प्रकार राजभक्त प्रजा की वाणी राजा को प्रसन्न करती है, उसी प्रकार (जिन्वतम्) आपको प्रसन्न करे ॥६॥
भावार्थभाषाः - मन्त्र में ‘इमा ब्रह्माणि’ के अर्थ वैदिक वाणियों के हैं। जिस प्रकार वेद की वाणियें नृपति राजा को कर्म में और अपने स्वधर्म में प्रेरणा करती हैं वा यों कहो कि जिस प्रकार प्रजा की प्रार्थनायें राजा को दुष्टदमन के लिये उद्यत करती हैं, इसी प्रकार आप हमारी प्रार्थनाओं से दुष्ट दस्युओं का दमन करके प्रजा में शान्ति का राज्य फैलावें ॥६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रासोमा) हे भगवन् ! (इयम्, मतिः) अनया मत्प्रार्थनया (वाम्) भवान् (विश्वतः) सर्वान् शत्रून् (परिभूतु) वशमानीय सुमार्गाय प्रेरयतु यथा (कक्ष्या) उभयकक्षबन्धनी रज्जुः (वाजिना, अश्वा, इव) अतिबलानश्वान्वशी करोति तद्वत् (याम्, वाचम्) यया वाचा (वाम्) भवन्तं (मेधया) स्वबुद्ध्या (परिहिनोमि) प्रेरयामि (इमा, ब्रह्माणि) सेयं स्तुतिरूपा वाणी (नृपती, इव) प्रजावाक् राजानमिव (जिन्वतम्) भवते रोचताम् ॥६॥